देखे हैं कई दर साँवरे

हे गोविन्द….
देखे हैं कई दर “साँवरे”,
मगर तेरे दर सा कोई दरबार नहीं !
हुकूमतें दिलों पर जमाने में,
तेरी जैसी कोई सरकार नहीं !
आते नहीं मेरी आवाज पे तुम,
“सुदामा” जैसी मेरी पुकार नहीं !
आता नहीं रूठे को मनाना मुझे,
शब्दों में “गोपी” जैसी मनुहार नहीं !
पूजा अर्चना की नहीं सूझ मुझे,
“मीरा” जैसी भक्ति दरकार नहीं !
दर कैसे तेरे मैं आऊँ “मोहन”,
मुझ जैसा कोई गुनाहगार नहीं !
भव पार कैसे उतर पाऊँगा मैं,
हाथ में जो तेरे मेरी पतवार नहीं !

*?!! जय श्री कृष्णा !! ?*


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