सृष्टि कितनी भी बदल जाये

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जय श्रीराम?

‘सृष्टि’ कितनी भी बदल जाये,
हम सुखी नहीं हो सकते;
पर
‘दृष्टि’ जरा सी बदल जाये,
तो हम सुखी हो सकते हैं

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