जीवन में धर्म की आवश्यकता है

जय क्षैत्रपाल बाबा की

जीवन में धर्म की आवश्यकता है, धन की आवश्यकता है, मकान और मित्रों की आवश्यकता है तथा शत्रुओं की भी आवश्यकता है। जिसके जीवन में कोई शत्रु नहीं वह अभागा है।

जिसके जीवन में कोई विरोध नहीं वह उन्नति से वंचित रह जाता है। अनुकूलता में विलास जगता है और प्रतिकूलता में विवेक जगता है। अनुकूलता और प्रतिकूलता बुद्धि को विकसित करने के साधन हैं।

हम लोग उनका साधन की तरह उपयोग नहीं कर पाते हैं। अनुकूलता में हम भोग रूपी दलदल में गिर जाते हैं और प्रतिकूलता में शिकायत रूपी कलह में उलझ जाते हैं। इसलिए हमारी बुद्धि का वह विकास नहीं होता जो विकास करके बुद्धि परमात्मा में टिक सके।

जय बाबा की??
जय जिनेन्द ??
शुभ रात्रि ??


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