छलिया छैल छबीले की,
मुकुट छटा साजे टेढ़ी,
मन मोहनी मूरत मोरपंख छड़ी,
सिर पर सोहे सुन्दर टेढ़ी।
कारी कारी घूंघर वारी,
लट लटक रही जुल्फें टेढ़ी,
गल मणिमाल कानों कुंडल,
कर कमलो में मुरली टेढ़ी।
कदम की पेड़ की छाँव खड़े,
कमर कमाल करके टेढ़ी,
पीताम्बर फर फर फहराता,
तो तिरछे चरणन ऐड़ी टेढ़ी।
हर बात टेढ़ी हाथों टेढ़ी,
चाल है टेढ़ी चालें टेढ़ी,
चितचोर चंद्र के चित चढ़गी,
तो नैनों में बसी चितवन टेढ़ी।
छलिया छैल छबीले की मुकुट छटा साजे टेढ़ी
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